याचिका लगाई है। उसने राष्ट्रपति से कहा कि वह जीना चाहता है। जीवन का मोल तो दोषियों को तब भी समझ आना चाहिए था, जब उन्होंने एक जिंदगी को अपनी दरिंदगी से खत्म कर दिया। 17 दिसंबर को जब दिल्ली के एक अस्पताल में निर्भया जिंदगी और मौत की जंग लड़ रही थी, उसकी मां और पिता लगातार यही प्रार्थना करते कि वो बच जाए। एक बार उसे बुदबुदाते सुना गया कि 'वो जीना चाहती है।' शरीर के अंदरुनी हिस्सों में कई टांकों और मल्टी आॅर्गन फेलियर के बाद भी उसके जीने की ललक ही थी कि वो मौत से लड़ रही थी। डॉक्टर भी हैरान थे, क्योंकि दोषियों ने लोहे की रॉड उसके शरीर में डालकर उसके जीवन को लगभग समाप्त ही कर दिया था, लेकिन फिर भी उसकी सांसें चलती रही, इसलिए कि वो जीना चाहती थी। दिल्ली से उसे एयर एंबुलेंस से सिंगापुर ले जाया गया, जहां 28 दिसंबर को आखिरकार उसने दम तोड़ दिया।